(2) विरेचनः-पैत्तिक रोगों के लिए उक्त कर्म लाभदायक है।
2.
केवल प्रलम्ब और कंस के वध पर देवताओं का फूल बरसाना देख कर उक्त कर्म के लोकव्यापी प्रभाव का कुछ आभास मिलता है।
3.
● अतिवहनम्-अतिवाहः अर्थात् धूम, अर्चिरादि मार्गों के अभिमानी देवताओं द्वारा परलोक में पहुँचाना, उक्त कर्म में जो दक्षहै, वह आतिवाहिक कहलाता है।
4.
उक्त कर्म करने के उपरांत संतान प्राप्ति के इच्छुक दंपत्ति को भारतीय प्राचीन ग्रंथों में बताए शुभाशुभ समय का विचार कर शुभ समय में गर्भाधान का प्रयास करना चाहिए।
5.
टी. वी.जैसे प्रबल जनसंचार-माध्यम (जो जन-शिक्षा/जन-जागरुकता का व्यापक औजार हो सकता था) के कई चैनलों पर इन बाबाओं ने अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कर रखी है, जिस के जरिये अपने सारे उक्त कर्म ये सहजता से सम्पादित करते हैं ।
6.
1 पूर्व जन्म का कर्म: पूर्व जन्म के अंत मे अथवा अंतकाल के समय या फिर मृत्यु पूर्व जो अभिलाषाएं, इच्छाएं अथवा साकेतिक अभिप्राय यह है कि पूर्व जन्म का उक्त कर्म फल जीवात्मा को इस जन्म में भोगना ही पड़ता है।
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टी. वी. जैसे प्रबल जनसंचार-माध्यम (जो जन-शिक्षा / जन-जागरुकता का व्यापक औजार हो सकता था) के कई चैनलों पर इन बाबाओं ने अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कर रखी है, जिस के जरिये अपने सारे उक्त कर्म ये सहजता से सम्पादित करते हैं ।
8.
इस जन्म में व्यक्ति आजीवन अग्रांकित कुल प्रमुखतः आठ प्रकार के कर्म का फल का स्वाद चखता है-1 पूर्व जन्म का कर्म: पूर्व जन्म के अंत मे अथवा अंतकाल के समय या फिर मृत्यु पूर्व जो अभिलाषाएं, इच्छाएं अथवा साकेतिक अभिप्राय यह है कि पूर्व जन्म का उक्त कर्म फल जीवात्मा को इस जन्म में भोगना ही पड़ता है।